ब्लॉग

सत्ता और पद के नशे से लड़खड़ाता सिस्टम

भूपेन्द्र गुप्ता
जब भी समाज घातक घटनाओं को नजरअंदाज करता है और उन पर कोई स्टैंड नहीं लेता तो वे नजीर बन जातीं हैं। अठारह साल पहले स्व जुगलकिशोर बागरी ने माध्यमिक शिक्षा मंडल के एक बाबू क़ा कालर पकड़ लिया था वे तब जल संसाधन  मंत्री थे। उसी काल में एक और मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने भी एक डाक्टर को थप्पड़ जड़ दिया था।घटनायें तो भुला दीं गईं किंतु विकृति बढ़ती गई है।

देश  आज जिस राह पर है वह निश्चित ही चौंकाने वाला है।प्रतिक्रियायें हिंसक और उन्मादी होती जा रहीं हैं। सीमायें अपने आप टूट रहीं हैं। ऐसा क्यों हो रहा है।
पूर्व म़ें हुईं तीन घटनाओं की तरह एक ही सप्ताह में  फिर से वैसी ही  नई घटनायें सामने आ गई हैं।जो झकझोरतीं हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने अपने सार्वजनिक भाषण में अल्पसंख्यकों को कठमुल्ला कहते हुए उन्हें देश के लिये खतरनाक बताया  है।वे कथित रूप से  बहुसंख्यकों के अनुसार देश चलाने की बात भी कहते हैं। उनके विरुद्ध महाअभियोग लाने की बात हो रही है।यह रेडिकिलाईजेशन (कट्टरता) की नई नजीर है।

इससे भी खतरनाक घटना गाजियाबाद के जिला जज द्वारा छोटी सी बात पर वकीलों से हुए वाद विवाद में जिला न्यायाधीश और वकीलों के बीच में कथित झूमा झटकी की है, जहां पुलिस द्वारा वकीलों की जबरदस्त पिटाई के बाद वकीलों द्वारा अदालत के बाहर पुलिस चौकी में आग लगा देने की है।यह दोनों घटनायें न्यायपालिका के आचरण पर रोशनी डालती हैं अगर न्यायाधीश इतने ही प्रतिक्रियावादी हो जायेंगे तब  निष्पक्ष न्याय की परिकल्पना ही व्यर्थ है।कल तक तो न्याय की मूर्ति की आंखों पर पट्टी थी लेकिन आज तो पट्टी हटा दी गई है ,तब जजों और वकीलों का यह कथित व्यवहार स्पष्ट संकेत है कि प्रतिक्रिया का उत्तेजक जहर पूरे कुंए में घुल चुका है। एक राष्ट्रीय दल के बड़े नेता के विरुद्ध विदिशा में शर्मनाक मामले में एफआईआर दर्ज हुई है।उसकी भतीजी ने ही उस पर यौन शोषण और रेप के आरोप लगाये हैं।हालांकि भाजपा ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया है किंतु यह वासनागत उन्माद की पराकाष्ठा है जिसमें रिश्ते तार तार हो  गये हैं।पारिवारिकता के रिश्तों को भी अब संशय की नजर से देखा जायेगा।इसके पूर्व भी पन्ना में रिश्तों को कलंकित करने वाला मामला दर्ज हुआ था।संयोग से वे भी इसी दल के नेता थे।क्या रसूख और सत्ता का गुमान दैहिक शोषण की आजादी का कारण बन रहा है,या यह केवल समाज को निरंतर उत्तेजक बनाये रखने के राजनीतिक तमाशों का अनिवार्य परिणाम है।

रतलाम में मध्यप्रदेश की एक नवजात पार्टी के इकलौते विधायक और एक शासकीय डाक्टर के बीच खुल्ले गाली गलौज का वीडियो भी अपनी अपनी भूमिका में मगरूरियत का प्रमाण है।जो डाक्टर विधायक को अशोभनीय गालीयां दे रहा हो उसका व्यवहार मरीजों से कैसा होगा?दूसरी तरफ क्या विधायक को भी नियमित कार्यों में इतना अतिक्रमण करना चाहिये कि  सरकारी कर्मचारी भी आक्रामक प्रतिक्रिया करने लगें।यह परिस्थिति खतरनाक है।  जब  सत्ता और पद का नशा सर चढ़ कर बोलता  है तो सिस्टम टूटता है और विकृतियां पनपने लगतीं हैं। प्रदेश में घर से भागकर कथावाचक अघोरी और साधु बनने के लिये 13 नावालिग बच्चे उज्जैन में पकड़े गये हैं।उनमें से लगभग सभी ने बताया है कि वे रीलें देख देखकर भक्ति और लोकप्रियता के लिये घर छोड़ आये हैं।रील का नशा और झूठी चमक दमक किस तरह से समाज में तात्कालिक सफलता और अवसरों की तरफ भागने के लिये प्रेरित कर रही है ।तय है कि हमारा सामाजिक ताना-बाना इन मासूम महत्वाकांक्षाओं को समाधान देने मे असफल है।

मजदूरों के खाते खुलवाकर साइबर अपराधियों को खाते बेचने वाले गिरोह पकड़े जा रहे है।जल्दी अरबपति बनने की ख्वाहिश,अभावों से जूझने की बजाय गरीबों की मजबूरी और अशिक्षा को लूट का साधन बना लेने की कलाकारियां खतरनाक हो रहीं हैं।पोस्ट आफिस में एक बुजुर्ग पेशनर महिला कज खाते से लाखों रुपया उड़ा लेने वाले पोस्ट आफिस कर्मचारी को भी क्या लालच की गिनीज बुक का रिकार्ड बना रहा है।ये विकृतियां एक जगह नहीं वल्कि समाज के हर हिस्से में दिखाई दे रहीं हैं।
हमें एक ऐसे समाज में धकेला जा रहा है जहां थाट और एक्शन के बीच कोई टाईम डिस्टेंस नहीं है।क्रिया के बाद सोचा जा रहा है कि ऐसा क्यों किया गया?ऐसे काल प्रवाह में जब समाज फंसता है तो पछताने का भी अवसर नहीं मिलता,क्या पछतावे के पहले इस आक्रामकता को रोका जा सकता है। समाज सुधारक,लोकप्रिय कथावाचक ,राजनीतिक नेतृत्व और कार्यपालिका इस पर विचार करें,हालांकि देर तो हो ही चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *